उत्तर प्रदेश में पेड़ों की अंधाधुंध कटान से मानसून पर संकट के बादल।
उत्तर प्रदेश में तेजी से हो रही पेड़ों की कटाई न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रही है, बल्कि राज्य के मानसून चक्र पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ने लगा है। सड़क चौड़ीकरण, विकास परियोजनाओं और शहरीकरण के नाम पर बड़ी संख्या में हरे-भरे पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे वर्षा की नियमितता और तीव्रता में गिरावट देखी जा रही है।
लगातार हो रही हरियाली की क्षति
बाराबंकी, उन्नाव, बिजनौर, अम्बेडकरनगर जैसे अन्य जिलों में हाल ही में हजारों पेड़ काटे गए हैं। उदाहरण के तौर पर, बाराबंकी में चार किलोमीटर लंबी फोर-लेन सड़क के निर्माण हेतु 800 से अधिक पेड़ों को हटाया जा रहा है। इसी तरह, बिजनौर में बिना अनुमति 17 आम के पेड़ों की कटाई पर वन विभाग ने आरोपियों पर ₹2.66 करोड़ का जुर्माना लगाया है।
मानसून चक्र पर असर
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि पेड़ नमी बनाए रखते हैं और वर्षा के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करते हैं। बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई से वायुमंडल में नमी की मात्रा घट रही है, जिससे बादलों का निर्माण प्रभावित होता है। इसके परिणामस्वरूप मानसून की शुरुआत में देरी हो रही है और वर्षा की मात्रा भी कम हो रही है।
जलवायु वैज्ञानिक डॉ. रश्मि श्रीवास्तव के अनुसार, “पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से स्थानीय वाष्पीकरण कम होता है, जो वर्षा प्रक्रिया में बाधा डालता है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो उत्तर प्रदेश में सूखा और असमय वर्षा आम समस्या बन सकती है।”
सरकारी कदम और चुनौतियाँ
सरकार ने पेड़ काटने के बाद नए पौधे लगाने की नीति बनाई है, जिसके तहत हर एक कटे हुए पेड़ की भरपाई के लिए 10 नए पौधे लगाने की व्यवस्था है। इसके अलावा “नगर उपवन योजना” के तहत छोटे शहरों में मिनी-जंगल विकसित करने का प्रयास भी किया जा रहा है। लेकिन पर्यावरणविदों का मानना है कि नए पौधों को पेड़ों में बदलने में वर्षों लगते हैं, जबकि नुकसान तत्काल हो रहा है।
आम जनता और विशेषज्ञों की मांग
स्थानीय लोग और सामाजिक संगठन मांग कर रहे हैं कि किसी भी विकास परियोजना से पहले पर्यावरणीय मूल्यांकन अनिवार्य हो। साथ ही, वैकल्पिक योजनाएं जैसे कि एलीवेटेड रोड, ग्रीन कॉरिडोर, और स्मार्ट प्लांटेशन पर ज़ोर दिया जाए।
निष्कर्ष; उत्तर प्रदेश में विकास कार्यों के नाम पर हो रही पेड़ों की कटाई अब मौसम और मानसून पर प्रभाव डालने लगी है। यदि समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में राज्य को सूखा, जल संकट और पर्यावरणीय असंतुलन का गंभीर खतरा झेलना पड़ सकता है।