पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, क्योंकि यह न केवल समाज की सच्चाई को उजागर करती है, बल्कि सरकार और प्रशासन के कार्यों पर निगरानी भी रखती है। लेकिन जब यह स्तंभ सत्ता और तंत्र की गंदी साजिशों का शिकार बनने लगे, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है और साथ ही संविधान के मौलिक अधिकार—अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता—पर भी सीधा प्रहार है।
मालीपुर थाना क्षेत्र से एक और गंभीर घटना सामने आई है, जो इस बात का प्रतीक है कि किस तरह सत्ता के दबाव में पत्रकारिता को कुचला जा रहा है। हाल ही में एक पत्रकार ने सोशल मीडिया पर सूत्रों के हवाले से एक खबर साझा की, जिसमें यह बताया गया था कि कुछ कांवड़ियों के पात्र कुचलने का मामला सामने आया है। यह खबर पुलिस के लिए इतनी चुभी कि मालीपुर पुलिस ने पत्रकार पर ही मुकदमा दर्ज कर दिया। यह घटना न केवल पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा करती है कि क्या अब पत्रकारिता का उद्देश्य केवल सत्ता के पक्ष में होना चाहिए?
स्थानीय लोग और पत्रकार जगत का आरोप है कि मालीपुर पुलिस अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए पत्रकार को निशाना बना रही है। सूत्रों के हवाले से खबर देना पत्रकारिता की सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन इसे आपराधिक कृत्य बताकर दंडित करने की कोशिश करना न केवल पत्रकारिता की स्वतंत्रता को कुचलने का प्रयास है, बल्कि यह लोकतंत्र की नींव को भी हिला सकता है।
इस घटना के बाद पत्रकारों में गहरा आक्रोश देखा जा रहा है। कई संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि मुकदमा वापस नहीं लिया गया और दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही नहीं की गई, तो वे आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अब सच लिखना गुनाह है? क्या अब पत्रकारों को अपने काम में स्वतंत्रता नहीं मिल सकती?
यह मामला केवल एक पत्रकार का नहीं है, बल्कि यह स्वतंत्र पत्रकारिता के अधिकार और समाज में सूचना की स्वतंत्रता की लड़ाई बन गया है। जब मीडिया के एक हिस्से को दबाया जाता है, तो यह हर नागरिक की सूचना पाने की स्वतंत्रता को खतरे में डालता है।
जिले के वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि यदि पुलिस को खबर से आपत्ति थी, तो पहले स्पष्टीकरण मांगा जाना चाहिए था, ना कि मुकदमा दर्ज करके पत्रकार को प्रताड़ित किया जाता। यह एक भयावह संकेत है, जो लोकतंत्र के स्वस्थ संचालन के लिए खतरनाक है।
इस पूरी घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मालीपुर पुलिस के द्वारा की गई कार्यवाही को लेकर केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं है, बल्कि यह एक स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को दबाने की साजिश है। पत्रकारों ने शासन-प्रशासन से यह मांग की है कि इस मुकदमे को तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए, अन्यथा जनपद भर में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
लोकतंत्र की सशक्तीकरण के लिए पत्रकारिता का स्वतंत्र रहना जरूरी है। पत्रकारों पर इस तरह के हमले न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, बल्कि यह समाज में सूचना की स्वतंत्रता को भी संकट में डालते हैं। अब समय आ गया है कि हम सभी इस मुद्दे पर एकजुट होकर लोकतंत्र की रक्षा करें और स्वतंत्र पत्रकारिता को दबाने की हर कोशिश का विरोध करें।
संपादक – विजय कुमार