आज जब दुनिया तकनीकियों और औद्योगिक प्रगति की ओर तेज़ी से बढ़ती जा रही है, तब हमारे सामने एक गंभीर चुनौती भी खड़ी होती जा रही है—पर्यावरण संरक्षण।
वनों की अंधाधुंध कटाई, जलवायु परिवर्तन, वायु और जल प्रदूषण जैसी समस्याएं न केवल प्राकृति की संतुलन को बिगाड़ रही हैं, बल्कि मानव अस्तित्व के लिए भी तेज रफ़्तार से खतरा बनती जा रही हैं।
धरती पर जीवन केवल तभी संभव है जब पर्यावरण संतुलित और स्वच्छ होगा। पेड़-पौधे, नदियाँ, समुद्र, वन्य जीव और वायुमंडल—ये सभी प्रकृति के अनमोल उपहार हैं लेकिन वर्तमान में हम लोग इन्हीं संसाधनों का अत्यधिक और असंतुलित दोहन कर रहे हैं। नतीजा है—ग्लोबल वार्मिंग, सूखा, बाढ़, जैव विविधता का ह्रास, जीवन की गुणवत्ता में गिरावट।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित करें। “हरित विकास” को अपनाते हुए स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों को प्राथमिकता दें। सरकारों को सख्त पर्यावरणीय नीतियाँ लागू करनी होंगी और आम जनता को भी अपने स्तर पर जिम्मेदारी भरे कदम उठाने होंगे—जैसे प्लास्टिक का कम उपयोग, पेड़ लगाना, पानी संरक्षण करना और सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करना।
शिक्षा संस्थानों में भी पर्यावरणीय चेतना को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस संकट को गंभीरता से समझें और समाधान की दिशा में कदम बढ़ाएँ।
पर्यावरण की रक्षा केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि हमारी ज़िम्मेदारी है। यदि हम अब भी नहीं चेते, तो आने वाला समय केवल पछतावे का ही होगा। आइए, मिलकर एक हरित और सुरक्षित भविष्य की नींव रखें।
संपादक- विजय कुमार