Sunday, July 27, 2025
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काकोरी ट्रेन एक्शन के शताब्दी वर्ष पर चंबल संग्रहालय ने उठाए सवाल!

पंचनद, इटावा – काकोरी ट्रेन एक्शन के शताब्दी वर्ष का पांच माह बीतने के बाद भी ऐतिहासिक तथ्यों में सुधार की मांग पूरी नहीं हो सकी है। चंबल संग्रहालय, पंचनद ने बीते अगस्त से काकोरी केस के क्रांतिकारियों से जुड़े स्थलों पर आयोजन कर ऐतिहासिक चेतना जागृत करने का प्रयास किया है। वहीं, संग्रहालय ने राज्य सरकार से काकोरी कांड की जगह ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ शब्द प्रयोग करने की अपील की थी, लेकिन यह पहल सरकार की ओर से केवल औपचारिकता तक सिमटकर रह गई।

ऐतिहासिक तथ्यों में त्रुटियां बरकरार

चंबल संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. शाह आलम राना ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को पत्र लिखते हुए काकोरी ट्रेन एक्शन से जुड़े तथ्यों में सुधार की मांग की। उन्होंने बताया कि आजादी के महानायक रामप्रसाद बिस्मिल के बलिदान स्थल, गोरखपुर जेल, में लगी पट्टिका पर उनकी बलिदान तिथि 19 दिसंबर 1927 के बजाय 29 दिसंबर 1927 अंकित है। यह न केवल ऐतिहासिक तथ्यों के साथ खिलवाड़ है, बल्कि नई पीढ़ी के मन में भ्रम पैदा करता है।

बिस्मिल की आत्मकथा: शहादत से पहले का हलफनामा
रामप्रसाद बिस्मिल ने गोरखपुर जेल की फांसी कोठरी में फांसी से दो दिन पहले अपनी आत्मकथा लिखी थी। उनकी यह कृति, जिसमें उन्होंने अपने क्रांतिकारी जीवन और संघर्ष का उल्लेख किया है, आज भी क्रांतिकारी आंदोलन का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। बिस्मिल ने आत्मकथा में लिखा:
“सरकार की इच्छा है कि मुझे घोटकर मारे। इस गरमी की ऋतु में साढ़े तीन महीने तक फांसी की कोठरी में भूंजा गया। नौ फीट लंबी, नौ फीट चौड़ी इस कोठरी में प्रातः आठ बजे से रात्रि आठ बजे तक सूर्य की किरणें और अग्निवर्षण होता है।”

संग्रहालय की मांग

डॉ. राना ने सरकार से मांग की है कि शहीदों से जुड़े स्थलों पर लगे शिलापट्ट में सुधार किया जाए और काकोरी ट्रेन एक्शन को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया जाए। चंबल संग्रहालय ने इस दिशा में अपने प्रयासों को तेज करने का संकल्प लिया है और जनता से भी ऐतिहासिक तथ्यों की रक्षा के लिए समर्थन मांगा है।

सरकार की भूमिका पर सवाल

काकोरी ट्रेन एक्शन के शताब्दी वर्ष पर सरकार ने उत्साह तो दिखाया, लेकिन इसे धरातल पर उतारने के प्रयास नदारद रहे। चंबल संग्रहालय के प्रयासों के बावजूद सरकार की उदासीनता ने इस ऐतिहासिक अवसर को केवल रस्म अदायगी तक सीमित कर दिया है।

काकोरी ट्रेन एक्शन के शताब्दी वर्ष को ऐतिहासिक चेतना और शहीदों के प्रति सम्मान का प्रतीक बनाने के लिए जरूरी है कि सरकार और जनता, दोनों इस पर गंभीरता से काम करें। रामप्रसाद बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारियों के बलिदान को सही संदर्भ और सम्मान मिलना न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी।

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