Wednesday, July 2, 2025
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विकास की दौड़ में पिछड़ता सुलेमपुर: दशकों से नाली विहीन सड़कें

जलभराव से हाहाकार
अंबेडकरनगर, [16-06-2025]: बसखारी-मोतिगरपुर मार्ग पर स्थित सुलेमपुर गाँव की तस्वीरें विकास के दावों पर करारा तमाचा जड़ रही हैं। जहाँ एक ओर सरकारें ‘ग्राम स्वराज’ और ‘स्मार्ट विलेज’ की बात करती हैं, वहीं सुलेमपुर के ग्रामीण आज भी बुनियादी सुविधा, यानी जल निकासी के लिए नालियों को तरस रहे हैं। बारिश का नामोनिशान होते ही गाँव की सड़कें तालाब का रूप ले लेती हैं, जिससे जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है।
समस्या की जड़: दशकों की अनदेखी
गाँव के बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक सभी की एक ही पीड़ा है – “हमने कभी अपने गाँव में नाली बनते नहीं देखी।” ग्रामीण बताते हैं कि आजादी के बाद से आज तक किसी भी सरकार या स्थानीय निकाय ने सुलेमपुर की इस गंभीर समस्या पर ध्यान नहीं दिया। हल्की बारिश में ही सड़कों पर कमर तक पानी भर जाता है, जिससे आवागमन ठप हो जाता है। बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, बीमार लोगों को अस्पताल ले जाना दूभर हो जाता है और दैनिक मजदूर काम पर नहीं निकल पाते।
बीमारियों का घर बनती ‘सड़कें’
जलभराव केवल आवागमन की समस्या नहीं है, यह स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बन चुका है। गंदे पानी में पनपने वाले मच्छर, मक्खियाँ और अन्य कीट-पतंगे गाँव में मलेरिया, डेंगू, टाइफाइड जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ा रहे हैं। गाँव की महिलाएँ बताती हैं कि उन्हें घर के बाहर कदम रखने में भी डर लगता है, क्योंकि कीचड़ और गंदगी से भरे रास्तों पर फिसलने और चोट लगने का डर हमेशा बना रहता है।
शिकायतों का अंबार, परिणाम शून्य
ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने कई बार चुनाव में नेताओं के आश्वासन सुनते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही हमारी समस्या जस की तस बनी रहती है,” एक व्यथित ग्रामीण ने कहा। प्रशासन की यह अनदेखी गाँव के लोगों में भारी आक्रोश पैदा कर रही है।
आंदोलन की चेतावनी
सुलेमपुर के ग्रामीणों ने अब आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही उनकी समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकाला गया और गाँव में नालियों का निर्माण शुरू नहीं किया गया तो वे सड़कों पर उतरकर बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगे। उनकी मांग है कि प्रशासन तत्काल प्रभाव से गाँव का दौरा करे, जल निकासी की योजना बनाए और उसे शीघ्रता से क्रियान्वित करे ताकि सुलेमपुर को इस नारकीय जीवन से मुक्ति मिल सके।
यह केवल सुलेमपुर की कहानी नहीं है, बल्कि देश के उन अनगिनत गाँवों की दास्ताँ है जो आज भी विकास की मुख्यधारा से कटे हुए हैं और मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। सरकार और प्रशासन को ऐसे गाँवों की सुध लेनी होगी, तभी ‘विकास’ की संकल्पना सही मायनों में साकार हो पाएगी।

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