अंबेडकर नगर/संतकबीरनगर। लोकसभा क्षेत्र 62, संतकबीरनगर से निर्वाचित समाजवादी पार्टी के सांसद लक्ष्मीकांत उर्फ पप्पू निषाद को पद संभाले हुए एक वर्ष से अधिक समय हो चुका है। लेकिन आलापुर विधानसभा क्षेत्र की जनता यह कहने पर मजबूर है कि चुनाव जीतने के बाद सांसद जी ने आम जनों से न के बराबर संपर्क रखा है। सांसद की क्षेत्रीय सक्रियता को लेकर सोशल मीडिया पर “लापता सांसद” जैसी खबरें तेजी से वायरल हो रही हैं, जिससे जनमानस में हलचल मच गई है।
आलापुर क्षेत्र के कई गांवों के निवासियों और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बताया कि चुनाव जीतने के बाद से सांसद का कोई ठोस दौरा नहीं हुआ। कुछ विशेष लोगों के घरों तक ही सांसद की सीमित उपस्थिति रही है, जहां से तस्वीरें खिंचवाकर प्रचार तो जरूर किया गया, लेकिन क्षेत्र की समस्याओं और जनता की आवाज़ से दूरी बनी रही।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यदि गांव के किसी व्यक्ति से यह पूछा जाए कि उनके क्षेत्र के सांसद कौन हैं, तो कई बार जवाब तक नहीं मिल पाता। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या सांसद को क्षेत्र की जानकारी का अभाव है, या फिर कुछ लोग जो उनके करीबी बने हुए हैं, सांसद को गुमराह कर रहे हैं?
पत्रकार को धमकी, वायरल हुआ ऑडियो
इस मुद्दे ने तब और तूल पकड़ा जब एक स्थानीय पत्रकार ने “लापता सांसद” शीर्षक से सोशल मीडिया पर खबर प्रसारित की। इसके बाद अपने को सांसद प्रतिनिधि बताने वाले सुरेंद्र निषाद ने पत्रकार को फोन कर धमकी दी कि यदि ऐसी खबर दोबारा चलाई गई तो उन पर IPC की धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया जाएगा। यह ऑडियो क्लिप भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।
जनता के बीच यह चर्चा आम होती जा रही है कि जब प्रतिनिधि सवालों से भागे, और उनके सहयोगी पत्रकारों को धमकाएं, तो लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर होती है। पत्रकारों की जिम्मेदारी है कि वे जनता की आवाज़ को प्रशासन और जनप्रतिनिधियों तक पहुंचाएं। लेकिन जब सवाल उठाने पर डराने की कोशिश हो, तो यह न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार है, बल्कि राजनीतिक जवाबदेही पर भी सवाल उठाता है।
जनता की उम्मीदें टूटी, संवादहीनता बनी समस्या
संतकबीरनगर की आलापुर विधानसभा के मतदाताओं ने पप्पू निषाद को बड़ी उम्मीदों के साथ संसद भवन भेजा था। लेकिन सांसद के दुर्लभ संपर्क और संवादहीनता ने निराशा को जन्म दिया है।
अब क्षेत्र की जनता यही सवाल कर रही है — क्या यह वही प्रतिनिधित्व है, जिसकी कल्पना उन्होंने अपने वोट से की थी?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनप्रतिनिधि का जनता से संवाद और निरंतर संपर्क आवश्यक है। संवादहीनता ही निराशा को जन्म देती है, और वही अब आलापुर में साफ देखी जा रही है।