बस्ती (उप्र) – बस्ती जनपद का ऐतिहासिक क्रांति स्थल महुआ डाबर एक बार फिर राष्ट्रभक्ति की भावना से सराबोर हो उठा, जब क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां की मजार की मिट्टी यहां श्रद्धापूर्वक स्थापित की गई। शाहजहांपुर से लाई गई यह मिट्टी न केवल एक प्रतीक है, बल्कि उन क्रांतिकारी मूल्यों और बलिदानों की जीवंत स्मृति है, जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाई।
महुआ डाबर संग्रहालय में आयोजित समारोह में जब मिट्टी की गुलपोशी की गई, तो वहां उपस्थित जनसमूह की आंखें नम हो उठीं। “यह मिट्टी हमारे लिए एक आस्था का केंद्र है,” संग्रहालय के महानिदेशक और प्रख्यात दस्तावेजी लेखक डॉ. शाह आलम राना ने कहा। “इस पहल का उद्देश्य नई पीढ़ी को आज़ादी की वास्तविक कीमत से परिचित कराना है।”
इतिहास की छाया में न्याय की प्रतीक्षा
डॉ. राना ने बताया कि 1857 की क्रांति में महुआ डाबर एक संगठित प्रतिरोध का केंद्र था, जहां हजारों ग्रामीणों ने बलिदान दिया। बावजूद इसके, स्वतंत्र भारत में इस गांव को अपेक्षित सम्मान नहीं मिल सका। न कोई सरकारी स्मारक, न स्थायी पुष्पांजलि स्थल। संग्रहालय अब इस उपेक्षित इतिहास को राष्ट्रीय चेतना में लाने का संकल्प ले चुका है।
‘बलिदान-स्मृति स्तंभ’ की ओर पहला कदम
महुआ डाबर संग्रहालय ने एक नई योजना के तहत देश के प्रमुख शहीद स्थलों की मिट्टी एकत्र कर एक राष्ट्रीय स्मारक बनाने की घोषणा की है। यह स्मारक न केवल ऐतिहासिक चिन्ह होगा, बल्कि युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत भी बनेगा। अशफाक उल्ला खां की मजार की मिट्टी इस अभियान की पहली कड़ी है।
अशफाक उल्ला खां: आदर्श का प्रतीक
अशफाक उल्ला खां ने पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के साथ काकोरी कांड में भाग लिया और देश के लिए हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। उनकी जेल डायरी, पत्र और विचार आज भी युवाओं में देशभक्ति की चिंगारी जला सकते हैं। संग्रहालय में वर्ष 2011 से उनके कई दुर्लभ दस्तावेज संरक्षित हैं, जिन्हें देशभर में प्रदर्शित किया जा चुका है।
समारोह में उमड़ा जनसमूह
इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने गांव के बुजुर्ग, विद्यार्थी, समाजसेवी, पत्रकार और क्रांति प्रेमी युवा। जैसे ही मिट्टी को संग्रहालय में स्थापित किया गया, पूरा परिसर ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘अशफाक अमर रहें’ के नारों से गूंज उठा। श्रद्धालुओं ने मिट्टी को माथे से लगाकर उस महान आत्मा को नमन किया।
राष्ट्रीय अभियान की अपील
कार्यक्रम के अंत में डॉ. राना ने शासन, प्रशासन और समाज के सभी वर्गों से इस अभियान में सहभागी बनने की अपील की। उन्होंने कहा, “यह केवल संग्रहालय का प्रयास नहीं है, यह एक राष्ट्रीय चेतना का आंदोलन है। हर वह व्यक्ति जो इस देश से प्रेम करता है, वह इसका भागीदार है।”
आने वाले कदम
डॉ. राना ने बताया कि जल्द ही गोरखपुर, झांसी, मेरठ, बरेली, कानपुर, जलियांवाला बाग, हुसैनीवाला, अंडमान, साबरमती जैसे स्थानों से भी मिट्टी लाकर ‘बलिदान-स्मृति स्तंभ’ के निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाया जाएगा।
उपस्थित गणमान्यजन
इस अवसर पर नूर मोहम्मद प्रधान, रमजान खान, फकीर मोहम्मद, इब्राहिम शेख, नासिर खान विधायक प्रतिनिधि, मुमताज खान, धर्मेंद्र, विजय प्रकाश बीडीसी, सतीश गौतम, कीर्ति कुमार, यशवंत, बाबूराम, मास्टर फिरोज, महसर अली, नबी आलम खान सहित कई गणमान्यजन मौजूद रहे।