अंबेडकरनगर। बसखारी विकासखंड से निकला हैंडपंप रिबोर घोटाला सिर्फ एक पंचायत का मामला नहीं है—यह उस सोच और सिस्टम का आईना है जो आज भी ग्रामीण विकास की जड़ों को सड़ा रहा है। जब सरकारें करोड़ों–अरबों की योजनाएं गांवों के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के नाम पर चलाती हैं, तो यह उम्मीद की जाती है कि आख़िरकार लाभ आम जनता तक पहुंचेगा। लेकिन कल्यानपुर उदनपुर पंचायत का यह मामला बताता है कि योजनाएं बनती भले ही आमजन के लिए हों, पर उनका असली फायदा कुछ भ्रष्ट अधिकारियों और पंचायत के ठेकेदार-मानसिकता वाले लोगों की जेब में ही चला जाता है।
सचिव जयंत यादव और ग्राम प्रधान पर लगे आरोप मामूली नहीं हैं। कागजों में ठीक, जमीन पर खराब—यह फार्मूला उत्तर प्रदेश की ग्रामीण व्यवस्था के लिए नया नहीं है, लेकिन यह अवश्य शर्मनाक है कि पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता पर भी फर्जी बिलों और मनगढ़ंत मरम्मत का खेल चलता रहे। जिस पानी को लेकर गांवों में रोजाना संघर्ष होता है, उसी पानी के नाम पर लाखों की लूट—यह सीधा-सीधा जनता के विश्वास से किया गया धोखा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बार-बार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति दोहराते रहे हैं। सवाल यह नहीं कि नीति क्या है, सवाल यह है कि क्या वास्तव में गांवों तक उसकी पहुंच है? क्या सचिव, ग्राम प्रधान और स्थानीय स्तर पर बैठे जिम्मेदारों तक इस सख्ती का असर पहुंचता है? यदि फाइलों में पूरा और जमीन पर अधूरा या शून्य कार्य ही चलता रहेगा, तो सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजी खानापूर्ति बनकर रह जाएंगी।
इस घटना से दो बड़ी विफलताएं साफ दिखाई देती हैं—
- पहली, निगरानी तंत्र की विफलता, जिसने करोड़ों की योजनाओं को बिना सत्यापन कागजों में पूरा मान लिया।
- दूसरी, जवाबदेही का अभाव, जिसमें भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों को न डर है न दंड का भय।
यदि गांव में हैंडपंप आज भी सूखे पड़े हैं और सचिव के क्लस्टरों में रिबोर और मरम्मत के नाम पर करोड़ों बहा दिए गए, तो यह सिर्फ एक पंचायत का मामला नहीं—यह सिस्टम में घुले जहर का प्रमाण है।
अब बारी है सरकार की।
क्या मुख्यमंत्री इस प्रकरण को एक उदाहरण बनाकर उन अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे जो सरकारी धन को अपनी निजी जागीर की तरह खर्च कर रहे हैं? या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह फाइलों में धूल फांकता रहेगा?
जनता अब सिर्फ घोषणाएं नहीं, परिणाम चाहती है। पानी पर लूट रोकना सिर्फ भ्रष्टाचार पर कार्रवाई का मुद्दा नहीं—यह जीवन से जुड़ा प्रश्न है। गांव सूखे पड़े हों और अफसरों की जेबें भरी हों, यह किसी भी लोकतंत्र का सबसे काला दृश्य है।
बसखारी का यह मामला सरकार को चेतावनी देता है—यदी स्तर पर भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगी, तो विकास सिर्फ भाषणों में रहेगा, जमीन पर नहीं।

