प्रेम प्रतिज्ञा पथ की जननी,
जीवन की उत्तरमाला है।
जो न जाने स्त्री को,
वो महामूर्ख जीवन वाला है।।
संसार के मुक्ति का वाहक,
बन स्त्री जीवन देती है।
संसार में लाने का मार्ग,
सिर्फ स्त्री ही तो देती है।।
पकड़कर उंगली पथ पर,
स्त्री खडाकर देती है।
क्यों भटक रहे हो यहां-वहां,
जब स्त्री ही जीवन होती है।।
सम्मान कर न सके जो उनका,
तो जीवन भर पछताओगे।
स्त्री ही है स्वर्ग जहां में,
फिर स्वर्ग कहां से पाओगे।।
कदमों में है जन्नत जिसके,
भटक-भटकर कहां जाओगे ।
उचित समय है अभी समय है, कोशिश करो तो जन्नत पाओगे।।
स्त्री का मतलब सिर्फ पत्नी नहीं, होती है दुनिया वालों।
माता बहन और भी है,
जीवन का निराला स्वर्ग है ये।।
जन्म दिया उंगली पड़कर चलाया, कभी जीवन साथी बनकर जीवन धन्य बनाया।
अंतिम यात्रा में भी स्त्री,
देवी का फर्ज निभाती है।।
न्यौछावर है सर्वस्व जीवन,
देवी तेरे सम्मान में।
लटके हैं बीच अधर में,
शरणागद हमें करो अपने जहान में।।
तेरे ही चरणों में जीवन है
विनती सुनो हे माता जननी।
रचनाकार- सर्वेश गुप्ता